कुंद कुंद भारती में जैन दर्शन के महासाध के मुनिराज 75 साल से दीक्षित प.पू. सिद्धान्त चक्रवर्ती श्वेतपिच्छाचार्य विद्यानंद जी मुनिराज ने 19 सितंबर 2019 को प्रातःकाल चारो प्रकार के आहार का त्याग और अपने सभी पदों का त्याग करके यम संलेखना धारण किया था, मुनिराज की संलेखना आचार्य श्री श्रुत सागर जी मुनिराज के संकेतानुसार और आचार्य श्री वसुनन्दी जी के निर्देशन में चल रही थी| जिसके बाद दिनांक 22 सितम्बर को प्रात: 02: 40am को मुनिश्री का समाधिमरण हुआ|
कर्णाटक के शेडवाल ग्राम में २२ अप्रैल १९२५ को जन्मे बालक सुरेन्द्र कुमार जो आगे जाकर ऐसे आचार्य बन गए जिनका नाम से ही विद्या का स्मरण हो जाता है आचार्य श्री विद्यानंद जी महाराज ।श्री कलाप्पा उपाध्याय के घर में श्रीमती सरस्वती बाई की कुक्षी से जन्मे बालक सुरेन्द्र कुमार। २५ जुलाई १९६३ को आचार्य देशभूषण जी से आपने मुनि दीक्षा ली।आपकी तपस्या और आपकी साधना केकारन १९८७ में आपको आचार्य पद की प्राप्ति हुई। और आप बन गए आचार्यश्री १०८ विद्यानंद जी महाराज।दिल्ली में आपने बहुत बार चौमासा कर के भारत की राजधानी में जैन धर्म का प्रचार-प्रसार का कार्य किया।
आचार्य श्री के विदेश में रहने वाले भक्तों को जब पता चला की भारत सरकार ने मयूर पंख पर प्रतिबन्ध लगाने का सर्कुलर निकल है तो उनको चिंता हुई कि हमारे गुरुदेव कि चर्या का निर्वाह केसे होगा।क्युकी शीघ्र ही चातुर्मास का शुभारम्भ होने वाला था।इसलिए उन्होंने वहा से यथा शीघ्र श्वेत मयूर पंख दिल्ली भिजवा दिए और उपाध्याय जी ने उसकी नूतन पिच्छी बना दी। पूज्य आचार्य श्री को चातुर्मास स्थापना के शुभ दिन श्वेत मयूर पंखो से निर्मित पिच्छी समर्पित की।श्वेत पंखो की पिच्छी देखकर हजारों उपस्थित श्रावकों को आश्चर्य हुआ और सबने एक स्वर से आचार्य श्री को श्वेतपिच्छाचार्य की उपाधि से अलंकृत किया। आचार्य विद्यानन्द जी वर्तमान के पहले आचार्य है जिन्हें मुनि दीक्षा लिए ५० साल हो गए है।
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