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जयपुर/ गठजोड़। श्री दिगम्बर जैन मंदिर कीर्तनगर जयपुर में धर्म सभा को सम्बोधित करते हुए छाणी परम्परा के सप्तम पट्टाधीश चर्या चूड़ामणि आचार्य श्री 108 विवेकसागर जी महानिराज ने कहा भगवान महावीर स्वामी का शासन निर्मल शासन हैं जिन तीर्थंकर चरण सानिध्य पाकर ही भव्य जीव अपने भावों को निर्मल बना पाते है। 

भगवान का उपदेश ही उन महान आत्माओ के लिए मार्गदर्शन बन जाते है जिन्होंने परमात्मा पर सम्यक प्रकार श्रद्धा आस्था विश्वास समर्पण कर देते  है उनको ही सम्यक दर्शन होता है।

समाधि मरण सम्यक दृष्टि जीवो के ही होता हैं सम्यक दृष्टि जीव के भाव निर्मल होते है सम्यक दृष्टि जीव मोक्षमार्ग की चीजो को खोजता रहता 

मैं सुखी ,मैं दुःखी मैं रंक राव यह भाव केवल संसार मार्गियों के होते है। एसी का कारण क्या है छड़भर की शीतलता मिल जाएगी फिर गर्म हवा आएंगी वही कष्ट दुख का अनुभव ।जो अपने जीवन को तीर्थ बनाना चाहते हैं उनको बाह्य जगत के पदार्थो को छोड़ना ही पड़ेगा। एसी तुमारी आत्मा को तीर्थ बनाने में संलग्न नही होगा। 

इसी प्रकार संसार मे सम्यक दृष्टि जीव होते है ।जो बुराइयां हटाता  रहता हैं निश्चित है वो समाधिमरण के अपने परिणामो को निर्मल बना लेता है।

चाशनी की बूंद यदि गिर जाए तो चींटी तुरन्त आती हैं यदि चींटी का पैर चिपक गया तो मरण को प्राप्त हो जाएगी ऐसे ही यदि अपन भी बुराइयों राग द्वेष ईर्ष्या व्यसन आदि से चिपक जायेगे संसार मे ही भरमण करते रहेंगे

भगवान महावीर स्वामी का शासन निर्मल शासन हैं - चर्या चूड़ामणि आचार्य श्री 108 विवेकसागर जी महामुनिराज

जयपुर/ गठजोड़। श्री दिगम्बर जैन मंदिर कीर्तनगर जयपुर में धर्म सभा को सम्बोधित करते हुए छाणी परम्परा के सप्तम पट्टाधीश चर्या चूड़ामणि आचार्य श्री 108 विवेकसागर जी महानिराज ने कहा भगवान महावीर स्वामी का शासन निर्मल शासन हैं जिन तीर्थंकर चरण सानिध्य पाकर ही भव्य जीव अपने भावों को निर्मल बना पाते है। 

भगवान का उपदेश ही उन महान आत्माओ के लिए मार्गदर्शन बन जाते है जिन्होंने परमात्मा पर सम्यक प्रकार श्रद्धा आस्था विश्वास समर्पण कर देते  है उनको ही सम्यक दर्शन होता है।

समाधि मरण सम्यक दृष्टि जीवो के ही होता हैं सम्यक दृष्टि जीव के भाव निर्मल होते है सम्यक दृष्टि जीव मोक्षमार्ग की चीजो को खोजता रहता 

मैं सुखी ,मैं दुःखी मैं रंक राव यह भाव केवल संसार मार्गियों के होते है। एसी का कारण क्या है छड़भर की शीतलता मिल जाएगी फिर गर्म हवा आएंगी वही कष्ट दुख का अनुभव ।जो अपने जीवन को तीर्थ बनाना चाहते हैं उनको बाह्य जगत के पदार्थो को छोड़ना ही पड़ेगा। एसी तुमारी आत्मा को तीर्थ बनाने में संलग्न नही होगा। 

इसी प्रकार संसार मे सम्यक दृष्टि जीव होते है ।जो बुराइयां हटाता  रहता हैं निश्चित है वो समाधिमरण के अपने परिणामो को निर्मल बना लेता है।

चाशनी की बूंद यदि गिर जाए तो चींटी तुरन्त आती हैं यदि चींटी का पैर चिपक गया तो मरण को प्राप्त हो जाएगी ऐसे ही यदि अपन भी बुराइयों राग द्वेष ईर्ष्या व्यसन आदि से चिपक जायेगे संसार मे ही भरमण करते रहेंगे

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