Halaman

    Social Items

ज़िन्दगी का एक उसूल है की यहां गिरना भी खुद है और चढ़ना भी खुद, हर कोई अपनी ज़िंदगी में अपनी लड़ाई लड़ रहा है कुछ पाने के लिए भी और यदि खोया तो जीतने के लिए ज़िन्दगी मानो एक रेस कार सी दर्शित होती है जहां एक कोई चूक हुई नही की आप हार जाएंगे लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस हार को ही अपनी शक्ति से अपना वर्चस्व बनाने वाले लोग बहुत कम ही मिल पाते हैं । इसी की एक मिसाल गौरव शर्मा भी हैं । एक नाम जो माउंटेनियरिंग के सफर को अपना बनाने वाले लोगों के लिए एक प्रेरणा है। 
देश की सबसे गर्म जगह चुरू में पले-बड़े गौरव शर्मा ने माउंटेनियरिंग को अपना प्रोफ़ेशन बनाने के पीछे की एक इंटरेस्टिंग स्टोरी हमारे साथ साझा की वे बोलते हैं कि स्पेस में उनका जाने का बड़ा ही मन था पर एक मैथमेटिक्स सब्जेक्ट में कमज़ोर होने के कारण वे ऐसा कर नही पाए हालांकि माउंटेनियरिंग में उनका शुरू से ही इंटरेस्ट काफी था। लाज़मी है कि इस प्रोफ़ेशन को अपनाने वाले हिम्मती लोगों ही होते हैं। ऐसे में इसे अपनाना थोड़ा कठिन भी हो जाता है पर गौरव के लिए उनके माता पिता ने ही उन्हें काफी प्रोत्साहन दिया ये उस समय की बात है जब ज़्यादातर पेरेंट्स अपने बच्चों को डॉक्टर्स और इंजीनियर बनता हुआ ज़्यादा पसंद करते थे, गौरव की पहली चढ़ाई 1999 में शुरू हुई उससे पहले गौरव ने लद्दाक तक साईकल एक्सपेंडिशन भी किया बेसिक और माउंटेनियरिंग में एडवांस्ड कोर्स कर वे इस प्रोफ़ेशन में और गहराई तक रमते चले गए शुरुआती कुछ समय में उन्होंने करीब 20 से 21 हज़ार फुट की पीक्स को फतह किया इस दौरान परेशानियां कुछ ऐसी थी कि गौरव के पास पहाड़ चढ़ने के लिए कुछ पैसा लगता है उसकी काफी कमी थी पर उनके टैलेंट की बदौलत वे कई फॉरेन एक्सपेंडिशनस के साथ कई और चोटियां भी अपने नाम की सफर  यूहीं चल रहा था पर 2006 में एक टर्निंग पॉइंट ने गौरव को हताश कर डाला था, उनका घुटना टूट चुका था और एक पर्वतारोही के लिए उसका घुटना टूट जाना एक कहर बन उभरता है जिसमें कैरियर समझो खत्म हो जाता है।   लेकिन फिर एक बार गौरव के माता पिता उनके लिए एक सहारा बन फिर मदद को आये उनकी माँ ने उनके घुटने का खास ख्याल रखा, एक्सरसाइज़ के साथ उनके सेहत से लेकर उनके आत्मबल को बनाये रखा ढाई महीने की कड़ी मशक्त करने के बाद नतीजा ये हुआ कि बुधवार 20 मई 2009 के दिन -42 डिग्री की सुबह छः बजके 15 मिनट पर बिना किसी गाइड के गौरव ने खुद एक रूट तैयार कर माउंट एवरेस्ट की चोटी पर तिरंगा लहरा दिया 55 मिनट तक शिखर पर समय गुज़रा और ताज्जुब की बात ये की गौरव ने केवल 3 ऑक्सिजन सिलिंडर में ही एवेरेस्ट को फतह कर लिया था इसपर माँ का गौरव से कहना था की एवेरेस्ट तो पर कर लिया पर क्लाइम्बिंग कभी मत छोड़ना इस उप्लब्धी के बाद गौरव ने पीछे मुड़कर न देखा उन्होंने इसे अपना अब फुल फ्लेजड कैरियर बना लिया था 
गौरव अपने इस इंटरव्यू में मानते हैं कि पहले के दौर में क्लाइंबर्स अति सहनशील और उनमें शक्ति होती थी आज के दौर में लोजिस्टिक्स शक्तिवान हो चुकी हैं और इसपर डिपेंडेंसी भी कई हद तक बढ़ चुकी है कुछ नखरों का भी ताता लगा हुआ होता है पहले जो खाने को मिल जाता था उसमें पर्वतारोही खुश रहते थे यानी कुल मिलाके एक एडजस्टब्लिटी की कमी और दिखावे की होड़ अभी फिलहाल नज़र आती है, वे आगे कहते हैं कि खुद के लिए चड़ो दिखावे के लिए नही, एक पूरा प्रशिक्षण और प्रशिक्षित ट्रेनर के साथ अपने मकसद को पूरा करें आज कल कोई एक व्यक्ति भी यदि 15 से 20 दिन की ट्रैकिंग किसी पहाड़ पर कर आता है तो वो अपनी एक कंपनी खोल बैठता है ऐसे में किसी अन्य के लिए ये घातक अंजाम  के अलावा और कुछ नही। इसके अलावा उनका ये भी मानना है कि क्यों न हम उन चोटियों को फतह करें जो भारत में अभी तक किसी के द्वारा खोजी न गयी हो क्यों न भारत में भी इन पहाड़ियों को एक्स्प्लोर कर यहां भी इस प्रोफ़ेशन को बढ़ावा दिया जाए ? बहराल इसी मक़सद पर खुद गौरव भी अपना कई समय से लगातार रुझान लगा रहे हैं वे अक्सर उन पहाड़ियों को फतह करने की कोशिश में होते हैं जो आजतक किसी के द्वारा फतह न करी गयी हों और बेशक युवा भी अपना कैरियर इस प्रोफ़ेशन में बना सकते हैं। 
एक सवाल के जवाब में गौरव ये ज़िक्र करते हुए कहते हैं कि आज के युवा अपने आप को सोशल मीडिया में जकड़ कर बहुत कुछ मिस कर रहे हैं वे प्रकर्ति के संधर्ब में कहते हैं कि युवा असल में प्रकर्ति को ही नही बल्कि अपनी आत्मा को भी खो रहे हैं इसपर गौरव का एक कमाल का इनिशिएटिव खास युवाओं के बेहतर जीवन को और ज़्यादा सवारने के लिए उपयोगी साबित होगा उन्होंने अपनी कंपनी कैम्प इंडिया एडवेंचर के माध्यम से बेहद कम दामों में प्रोग्राम को लांच किया है जिसमें एक टीनएज को नेचर को नजदीक से देखने और उसकी अहमियत को समझने का मौका मिलेगा इसमें एडवेंचर होगा जो युवाओं को उनके डिसिशन मेकिंग में काफी मददगार साबित होगा इस 5 दिन के प्रोग्राम की शुरुआत 1 अक्टूबर से शुरू होगी जिसमें यूथ, युवा या जो कोई भी इसका हिस्सा बनना चाहता है उसके लिए बेशक फायदेमंद साबित होगा । 
(ये इंटरव्यू था गौरव शर्मा का ललित शर्मा और आयुष शर्मा संग)

आईये पढ़ते हैं माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाले दुनिया के पहले और इकलौते अस्थमैटिक पर्वतारोही गौरव शर्मा के बारे में

ज़िन्दगी का एक उसूल है की यहां गिरना भी खुद है और चढ़ना भी खुद, हर कोई अपनी ज़िंदगी में अपनी लड़ाई लड़ रहा है कुछ पाने के लिए भी और यदि खोया तो जीतने के लिए ज़िन्दगी मानो एक रेस कार सी दर्शित होती है जहां एक कोई चूक हुई नही की आप हार जाएंगे लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस हार को ही अपनी शक्ति से अपना वर्चस्व बनाने वाले लोग बहुत कम ही मिल पाते हैं । इसी की एक मिसाल गौरव शर्मा भी हैं । एक नाम जो माउंटेनियरिंग के सफर को अपना बनाने वाले लोगों के लिए एक प्रेरणा है। 
देश की सबसे गर्म जगह चुरू में पले-बड़े गौरव शर्मा ने माउंटेनियरिंग को अपना प्रोफ़ेशन बनाने के पीछे की एक इंटरेस्टिंग स्टोरी हमारे साथ साझा की वे बोलते हैं कि स्पेस में उनका जाने का बड़ा ही मन था पर एक मैथमेटिक्स सब्जेक्ट में कमज़ोर होने के कारण वे ऐसा कर नही पाए हालांकि माउंटेनियरिंग में उनका शुरू से ही इंटरेस्ट काफी था। लाज़मी है कि इस प्रोफ़ेशन को अपनाने वाले हिम्मती लोगों ही होते हैं। ऐसे में इसे अपनाना थोड़ा कठिन भी हो जाता है पर गौरव के लिए उनके माता पिता ने ही उन्हें काफी प्रोत्साहन दिया ये उस समय की बात है जब ज़्यादातर पेरेंट्स अपने बच्चों को डॉक्टर्स और इंजीनियर बनता हुआ ज़्यादा पसंद करते थे, गौरव की पहली चढ़ाई 1999 में शुरू हुई उससे पहले गौरव ने लद्दाक तक साईकल एक्सपेंडिशन भी किया बेसिक और माउंटेनियरिंग में एडवांस्ड कोर्स कर वे इस प्रोफ़ेशन में और गहराई तक रमते चले गए शुरुआती कुछ समय में उन्होंने करीब 20 से 21 हज़ार फुट की पीक्स को फतह किया इस दौरान परेशानियां कुछ ऐसी थी कि गौरव के पास पहाड़ चढ़ने के लिए कुछ पैसा लगता है उसकी काफी कमी थी पर उनके टैलेंट की बदौलत वे कई फॉरेन एक्सपेंडिशनस के साथ कई और चोटियां भी अपने नाम की सफर  यूहीं चल रहा था पर 2006 में एक टर्निंग पॉइंट ने गौरव को हताश कर डाला था, उनका घुटना टूट चुका था और एक पर्वतारोही के लिए उसका घुटना टूट जाना एक कहर बन उभरता है जिसमें कैरियर समझो खत्म हो जाता है।   लेकिन फिर एक बार गौरव के माता पिता उनके लिए एक सहारा बन फिर मदद को आये उनकी माँ ने उनके घुटने का खास ख्याल रखा, एक्सरसाइज़ के साथ उनके सेहत से लेकर उनके आत्मबल को बनाये रखा ढाई महीने की कड़ी मशक्त करने के बाद नतीजा ये हुआ कि बुधवार 20 मई 2009 के दिन -42 डिग्री की सुबह छः बजके 15 मिनट पर बिना किसी गाइड के गौरव ने खुद एक रूट तैयार कर माउंट एवरेस्ट की चोटी पर तिरंगा लहरा दिया 55 मिनट तक शिखर पर समय गुज़रा और ताज्जुब की बात ये की गौरव ने केवल 3 ऑक्सिजन सिलिंडर में ही एवेरेस्ट को फतह कर लिया था इसपर माँ का गौरव से कहना था की एवेरेस्ट तो पर कर लिया पर क्लाइम्बिंग कभी मत छोड़ना इस उप्लब्धी के बाद गौरव ने पीछे मुड़कर न देखा उन्होंने इसे अपना अब फुल फ्लेजड कैरियर बना लिया था 
गौरव अपने इस इंटरव्यू में मानते हैं कि पहले के दौर में क्लाइंबर्स अति सहनशील और उनमें शक्ति होती थी आज के दौर में लोजिस्टिक्स शक्तिवान हो चुकी हैं और इसपर डिपेंडेंसी भी कई हद तक बढ़ चुकी है कुछ नखरों का भी ताता लगा हुआ होता है पहले जो खाने को मिल जाता था उसमें पर्वतारोही खुश रहते थे यानी कुल मिलाके एक एडजस्टब्लिटी की कमी और दिखावे की होड़ अभी फिलहाल नज़र आती है, वे आगे कहते हैं कि खुद के लिए चड़ो दिखावे के लिए नही, एक पूरा प्रशिक्षण और प्रशिक्षित ट्रेनर के साथ अपने मकसद को पूरा करें आज कल कोई एक व्यक्ति भी यदि 15 से 20 दिन की ट्रैकिंग किसी पहाड़ पर कर आता है तो वो अपनी एक कंपनी खोल बैठता है ऐसे में किसी अन्य के लिए ये घातक अंजाम  के अलावा और कुछ नही। इसके अलावा उनका ये भी मानना है कि क्यों न हम उन चोटियों को फतह करें जो भारत में अभी तक किसी के द्वारा खोजी न गयी हो क्यों न भारत में भी इन पहाड़ियों को एक्स्प्लोर कर यहां भी इस प्रोफ़ेशन को बढ़ावा दिया जाए ? बहराल इसी मक़सद पर खुद गौरव भी अपना कई समय से लगातार रुझान लगा रहे हैं वे अक्सर उन पहाड़ियों को फतह करने की कोशिश में होते हैं जो आजतक किसी के द्वारा फतह न करी गयी हों और बेशक युवा भी अपना कैरियर इस प्रोफ़ेशन में बना सकते हैं। 
एक सवाल के जवाब में गौरव ये ज़िक्र करते हुए कहते हैं कि आज के युवा अपने आप को सोशल मीडिया में जकड़ कर बहुत कुछ मिस कर रहे हैं वे प्रकर्ति के संधर्ब में कहते हैं कि युवा असल में प्रकर्ति को ही नही बल्कि अपनी आत्मा को भी खो रहे हैं इसपर गौरव का एक कमाल का इनिशिएटिव खास युवाओं के बेहतर जीवन को और ज़्यादा सवारने के लिए उपयोगी साबित होगा उन्होंने अपनी कंपनी कैम्प इंडिया एडवेंचर के माध्यम से बेहद कम दामों में प्रोग्राम को लांच किया है जिसमें एक टीनएज को नेचर को नजदीक से देखने और उसकी अहमियत को समझने का मौका मिलेगा इसमें एडवेंचर होगा जो युवाओं को उनके डिसिशन मेकिंग में काफी मददगार साबित होगा इस 5 दिन के प्रोग्राम की शुरुआत 1 अक्टूबर से शुरू होगी जिसमें यूथ, युवा या जो कोई भी इसका हिस्सा बनना चाहता है उसके लिए बेशक फायदेमंद साबित होगा । 
(ये इंटरव्यू था गौरव शर्मा का ललित शर्मा और आयुष शर्मा संग)

कोई टिप्पणी नहीं